इस जीव जगत में बह्म पूर्ण है। इसलिए यह जगत भी पूर्ण है। उसी पूर्ण से इस पूर्ण की उत्पत्ति हुई है। अतः हम अगर इस पूर्ण को निकाल देते है तो शेष पूर्ण ही रहता है।
ईशोपनिषद में इस नश्वर जीवन के बारे में कुछ यही कहा गया है। सनातन(हिंदू) धर्म में 108 उपनिषदों के उल्लेख है। यह ध र्म ग्रंथ आदिकाल में लिखे गए हैं। जिनकी बातें आज भी उतनी ही सार्थक हैं जितनी की पहले थीं। ईशोपनिषद की कुछ ऐसी ही ज्ञानदायक बातों का पिटारा...
इस परिवर्तनशील संसार में सब कुछ वस्तुएं ईश्वर ने ही बनाईं हैं और इनमें ईश्वर रहता है। जो वस्तुएं आपके पास नहीं है उसका लोभ मत करो।
जो लोग केवल शारीरिक बल प्रदर्शन यानी दूसरों की पीड़ा देने के लिए प्रसिद्ध हैं, जिनमें आदर्श मानवीय मार्ग को समझने की शक्ति नहीं है, वे लोग मृत्यु के बाद नर्क जाने को तैयार रहें।
ब्रम्हा एक है, उसमें चंचलता है, सबसे प्राचीन है, स्फूर्ति प्रदान करने वाला है और मन से भी तेज चलने वाला है। वह स्थिर रहने पर भी अन्य दौड़ते हुए आगे बढ़ जाता है। मां के गर्भ में रहनेवाला जीव उसी ब्रह्मा के आधर से अपने पूर्व में किए कर्म फल को प्राप्त होता है।
जो मनुष्य सभी प्राणियों की आत्मा के अंदर आत्मा है, ऐसा अनुभव करता है और समस्त प्राणियों में उसी एक आत्मा का विश्वासपूर्ण अनुभव करता है, उसे किसी के प्रति घृणा नहीं रहती।
विद्या यानी आत्मज्ञान से आत्मा की उन्नति होती है। अविद्या से सांसारिकता प्राप्त होती है। अतः इन दोनोंका फल भिन्न-भिन्न है।
Ritesh Vyas
I never think of myself as an icon.
Monday 7 December 2020
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Tuesday 28 April 2020
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